20.2.13

राष्ट्रिये स्वास्थ बीमा योजना ---कटु सच

२००८ से ये योजना उत्तर प्रदेश मे  चल रही है --पहले फेस मे चूँकि सरकार को एक संभल चाहिए था --तो लगभग पूरे प्रदेश मे एक प्राइवेट इन्सुरंस कंपनी आई.सी.आई.सी.आई लोम्बार्ड को इसको लागू करने का ठेका मिला ---कई हस्पतालों ने -दलालों ने --"अंधा पीसे --कुत्ते खाएं " की तर्ज़ पर जम कर इस स्कीम को लूटा --लोम्बार्ड क लोगों ने भी इनका साथ दिया --एम्पैनल्मेंट  से लेकर क्लैम पास होने तक इन्सुरेंस के अधिकारियों ने ,ग्राम विकास उत्तर प्रदेश के लोकल अधिकारियों से लेकर मंत्री लेबल तक पैसा चला और स्कीम का कबाडा कर दिया गया --एक एक इम्पैनाल्मेंट के लिए १ लाख से लेकर ३ लाख तक रूपया चला ---बीपीऐल स्मार्ट कार्ड बनने मे फिनो कंपनी के बन्दों ने जम कर फेक कार्ड बनाए और उस पर क्लैम भी दिया गया --ऐसे ऐसे हॉस्पिटल इम्पैन्ल कर दिय गए --जहां ऑपरेशन थियेटर की जगह एक साधारण सी टेबल और लाईट की जगह लैम्प लगा था ---- आश्चर्य की बात है की ऐसे होस्पितालों ने लाखों के क्लैम करे और पास भी हुए --- इस दौरान  उत्तर प्रदेश मे एस.एन.ऐ के पास कोई पावर नहीं थी ---उलटे प्राइवेट कंपनी ने सुब के पहले नोडल ओफ्फिसर जो एक महिला थी उनको भी अपने रसूख के दम पर हटवा  दिया ---लोम्बार्ड कंपनी ने देखा की क्लैम रेशियो बढ़ रहा है --तो उसने  अनर्गल सभी सम्मानित डॉक्टरों को प्रताडित करना शुरू कर दिया --रात के २ बजे तक सूबे की राजधानी मे बुलाकर --उनको चोर खा गया --और गेहूं के नाम पर घुन को भी पीसा गया ---इस कंपनी अपने घूस-खोर  अधिकारियों के कारण अच्छे डॉक्टर और चोर डॉक्टर मे फर्क करना नहीं आया --   -ये दौर २०१० तक चला ---फिर आया सरकारी कंपनियों का दौर ----यहाँ से इस स्कीम ने उत्तर प्रदेश मे दम तोडना शुरू कर दिया ----सरकारी कंपनियां केवल इस बात पर लगी रही --की कैसे क्लैम रेशियो कम रहे --तब इन सरकारी कंपनियों ने चाल चली की नए हॉस्पिटल इम्पैनल ही नहीं किये --और क्लैम रेशियो को कम करने के लिए ---कई हथकंडे अपनाए --जब इनसे भी बात नहीं बनी तो क्लैम ही रोक लिए और करोणों रूप्य्र के क्लैम ---"मिसमैच डाटा विथ प्री इन्रोल मेंट डाटा " के आधार पर नहीं दिए ---२०११-२०१२ तक इस स्कीम का बाजा बज चुका था ---२०१२-१०१३ मे सूबे मे काम ही नहीं हुआ --जो हुआ वो न के बराबर था ---आज ये स्तिथि है की उत्तर प्रदेश मे ७२ जिलों मे ३० से ऊपर जिसे जिलें हैं जिसमे क्लैम रेशियो मात्र १०-२० % ही है ---और जो हॉस्पिटल काम भी कर रहें हैं --वो डरें हुए है--की इलाज़ किया तो पैसा मीलेगा --की नहीं ---पूरे सूबे मे ये स्कीम एक ऐसे महकमे द्वारा संचालित हो रही है ---जो महकमा पहले से ही कई तरह के घोटालों मे फंसा हुआ है ---सूबे के कितने ही हॉस्पिटल एम.अच् .सी. कार्ड का इंतज़ार कर रहें हैं --
कहीं भी कोई भी सुनवाई नहीं है ---शिकायत करो --तकलीफ बताओ तो कहा जाता है --की स्कीम छोड़ दो --जिनको स्कीम मे रहना है तो ये सिस्टम को अपना लें वरना छोड़ दें ----

इस राष्ट्रिय स्तर की स्कीम मे ---इम्पैनाल्मेंट 'ओपन 'क्यूँ नहीं है ---जब की न्यूतम मानक बने हुयें हैं ---और तकरीबन हर राज्य मे एक हॉस्पिटल को लोकल सी.एम.ओ. से रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य होता है -----वही
रजिस्ट्रेशन मान्य हो और जो भी हॉस्पिटल चाहे वो स्मार्ट कार्ड होल्डर का इलाज़ कर सके

पूरे देश का बी.पी.एल डाटा सरकार के पास है और ये सरकारी मल्कियत है --सरकार अपनी इस मल्कियत को सामने रख कर स्मार्ट कार्ड बनवाने के लिए  पैन इण्डिया निविदा जारी करे --और ये कार्ड बनने की प्रक्रिया लगातार जारी रहे ---

यही डाटा के आधार पर इन्सुरेंस कंपनियों को भी आहूत करे --और वो आगे आयें ---

इस स्कीम मे टी .पी.ऐ जैसी थर्ड पार्टी की भी जरूरत नहीं है ---इस काम को सम्बंधित राज्य की नोडल एजेंसियां बखूबी संभाल सकतीं है ---फेक इलाज़ के इन्वेस्टिगेशन का जिम्मा केवल इन्सुरेंस कंपनी का होना चाहिए ---

आपके सुझाव आमंत्रित हैं