30.12.08

" सोचता हूँ "

जीवन में बहुत कुछ मिल जाता है अनायास
मिलता तो वो नही है जिसकी होती है आस
पूजा -पाठ,कर्म-धर्म शान्ति के उपाए हैं
जिन्दगी क्या है
अन्तिम पल तो केवल चार पाए हैं
आदमी क्या चाहता है
अफ़सोस किस लिए करता है
जब वो पाता है
ये जो दाता है
वो सबको बराबर दे जाता है
आदमी केवल उतना ही पाता है
जितना की वो ले पाता है
बस यही एक कमजोरी है
हर जिन्दगी की बस एक मजबूरी है
संघर्ष हर आदमी कर सकता है
मालूम है सबको हर संघर्ष का मूल्य होता है
पर क्या करे इन्सान
आज हो गया है बैमान
जब वास्तव में उसकी मेहनत का सही मूल्य नही मिल पाता है
तब वो भ्रष्टाचारी-यभिचारी हो जाता है
आदमी को जरूरत है उसके मूल्याकन की
और जरूरत है एक वास्तिविक मुस्कान की
उचित दाम मिले उसको उसकी मेहनत का
तभी सफल होगा जीवन हर इन्सान का
ख़तम होगा तभी भरष्टाचार और खुदगर्जी
नही दिखायेगा भाग्य अपनी ताकत और मर्जी
आओ हम अपने जीवन को सफल बनाये
ख़ुद सुखी रहे
कर्म ऐसा करे
सब सुख पायें
"सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे सन्तु निरामय सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चित् दुख्भाग्वीत "

" महाभारत "

जीवन के चक्रावियु में फँस गया हूँ ,
न में हूँ कोई अभिमन्यु ,
न मिली मुझे कोई उत्तरा,
न मिली मुझे कोई अर्जुन ,
बचा हुआ है जो ,
वो है केवल मेरा आत्मविश्वास ।
रथ मेरा बिना सारथि के है ,
दिशा हीन पथ भर्स्ट सा ,
मानो एक अज्ञात मंजिल की ओर ,
बढता चला जा रहा हूँ मैं ,
हाँ अब शुरू हो गई है महाभारत ।
जीत तो हमेशा पञ्च पांडव की होती है ।
जी हाँ मेरी अपनी पञ्च इन्द्रियां बाकि हैं ।
बाकि है थोड़ा अताम्विश्वास ,
बाकि है अभी थोड़ा सत्य ,
और अभी थोड़ा पराक्रम बाकि है ।
रथ मेरा पथ विचलित है तो क्या ?
में तो पथ विचलित नही,
आशा बाकि है अभी " कृष्ण " के मिलने की ,
और मुझे तो ये भी मालूम है ।
" " कर्मण्य वाधिकारस्ते माँ फल्येशु कदाचन ""
करम ही तो कर रहा हूँ ।
मेने फल की आशा त्याग दी है ।

" नया कदम "

क्या सोचा था ,क्या मिला
फ़िर कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए
अगले साल में कदम रखते हैं
वो पलों को साथ लेकर
जो पल हमने बेहतरीन ढंग से जिए
मुबारक हो तुम्हे नया साल
इस साल वो हर अच्छा काम करना
जो तुमने अभी तक नही किए

23.12.08

" ख़बर "

ये लो शान्ति बहन मिठाई खाओ ,क्यों बहन किस बात की मिठाई खिला रही हो सरला बहन ,अरे मेरे अशोक की नौकरी लग गई है .अशोक की माँ बोली ,चलो अच्छा हुआ अब तो उसकी शादी की चिंता करो ,अरे चिंता किस बात की मेरा अशोक तो लाखो में एक है उसको तो सर्व गुन संपन पत्नी मिलेगी ,अच्छा चलूँ अशोक आता ही होगा।
अशोक जब छोटा ही था तभी उसके पिता चल बसे बहुत कठिनाई सह कर मेने पालाहै उसे और कितना अच्छा निकला मेरा बेटा बिल्कुल बाप पर गया है कितना कहना मानता है मेरा ,न पान-बीडी ,न सिगरेट -तम्बाकू और न शराब आदि से दूर रहता है अब तो उसकी नौकरी भी लग गई है अब तो बस जल्दी से उसकी शादी कर एक सुंदर सी बहु ले आऊं यही सपना था अशोक के पिताजी का ,।
सोचती जा रही है सरला ,तभी अचानक आवाज आती है ,"बहन जी जरा सुनिए ",सरला मुड़कर देखती है "क्या हुआ ,बहन जी अशोक का एक्सीडेंट हो गया है ."क्या! कह कर सरला बेहोश हो जाती है ।
दुसरे दिन अख़बार में ख़बर छपती है -:
"दुर्खाटना में एक मौत "
'कानपूर ११ जनवरी दिन सोमवार गाँधी चौक के पास एक ट्रक ने स्कूटर चालक को टक्कर मार दी स्कूटर चालक ग़लत दिशा में जा रहा था ,एस्थानीय नागिरिकों की सहायता से स्कूटर चालक को हॉस्पिटल पहुँचा दिया है बाद में स्कूटर चालक ने यंहा दम तोड़ दिया ।
उलेखनीय है की स्कूटर चालक इनकम टैक्स में काम करता था उसके पास से बारामत कागजात से पता चला है की उसका नाम अशोक है और पोस्टमारतं की रिपोर्ट से पता चलता है की मृतक शराब पिए हुए था और शराब पीने का आदि था । "

4.12.08

मुंबई २६/११

आगये आगये आतंगवादी आगये
मर गए मर गए हाय हम मर गए
२६/११ को नही मरे
मरे तो तब थे जब १९४७ में देश के दो हिस्से हुए थे
अरे मरे थो तब थे जब पाकिस्तान बना था
मर तो बहुत पहले ही गए थे
अभी तो केवल जान निकली है
बहुत सीधी सी बात है पाकिस्तान के साथ
हमारे सम्बन्ध कभी भी नही बन सकते हैं
वो देश ही नही है
वो तो एक नासूर है
जिसको काट के फेंक ही देना चाइये
हमारे यंहा के नेता
माँ का दूध भूल चुके हैं
इतना तो कर सकते हैं
उन पाकिस्तानियों को चढी का दूध तो याद दिला सकते हैं
रोज़ रोज़ ५०० सपूतो के मरने से बेहतर है
एक बार लाख मरे
बस एक बार

29.11.08

इस चौबारे में

क्या रखा है मन्दिर मस्जिद -गुरूद्वारे में
आओ सब यंही तेरे घर के चौबारे मैं
दिया जलता है यंहा हर पहर
बस तो पैदा कर वो नज़र
सोचता क्यूँ है अपने गम के बारे मैं
हर मुस्किल आसान होगी तेरे घर के चौबारे मैं
जो चाहेगा वो पायेगा
मत घबरा आख़िर भाग के कंहा जायेगा
जायेगा कंहा -कंहा सर पटकेगा किस द्वारे मैं
लोट कर आना ही होगा तुझे तेरे घर के चौबारे मैं
तू क्या खोजता है सच बता जो तू खोजता है वो तुझे मिलता है
यह ग्रन्ध यह पोथी कुछ नही है इस नारे मैं
आ तुझे आना ही होगा अपने घर के चौबारे मैं
माँ की ममता बाप का साया जड़ें तेरी यंही है
जीवन का हर सुख तुने यंही से पाया
चमकेगा तू चाहे रौशनी उतनी हो जितनी तारे मैं
एक बार बस आजा तेरे घर के चौबारे मैं
क्यूँ सोचता है तू अकेला है
देख ये देश हवा पशु पक्षी और सबसे बड़ी ये पूरी प्रकृति इन सब का मेला है
फ़िर क्यूँ जाता है मन्दिर -मस्जिद-गुरूद्वारे मैं
सब तेरे अपने हैं बस तू न जा कंही रह अपने घर के चौबारे मैं
यह वही चौबारा है ताकत से जिसकी प्रह्लाद ने हिरन्यकश्यप को मारा है
यह वही चौबारा है अजमेर से हाजी अली ने सवांरा है
यह वही चौबारा है ताकत से आजाद हिंद हमारा हैekta
एकता के पवन सूत्र मैं बंध जायें हम बढे ताकत हमारे मैं
बस एक जुट होना ही होगा हमें इस घर के चौबारे मैं

आकृति

मात्रत्व के आभास की अनुपम लहर है आकृति
हमारे अभिसार की अनुभूति है आकृति
ममता के सहेज भावः की अभियक्ति है आकृति
गौरव मेरा विश्वास मेरा और संपूर्ण संसार है आकृति
एक छोटा सा बदन धकरण
आँखे सजग ,किल्कारिन और रुदन को समाहित करने से बना एक
समीकरण है आकृति
मेरे जीवन की जीवंत रचना यानि कृति है आकृति

पुलिश

मिल गया मुझे कोतवाल
पुछा मैंने कहो कैसे है हाल
बोला बड़ी मायूसी से पूछते हो हाल
हाल तो हैं बड़े बेहाल
घट गए हैं रेट मुस्किल से भर पाता है पेट
चोरी चमारी डकेती डाका -इसमे तो है फाका ही फाका
हाँ गर हो मुजरिम खून का -मिल जाता है आटा दो जून का
अब तो और भी विभाग करने लगे हैं रिश्वत लेने का काम
पुलिश तो है नाम की बदनाम
जब इनका यह हिया हाल
तब हम आम नागरिक का तो आ गया काल

20.9.08

कुछ न बचा

दस साल शादी के हो गए
प्यार जो था वो दे तो दिया
कुल जमा दो बच्चे भी हो गए
अभी एक साल से ऐसा हो रहा है
पैसा आ नही रहा
खर्चा खूब हो रहा है
पैसे आने की सम्भावना तो है
पर भाई
वर्तमान ख़राब है
भविष्य में पूरे होते दीखते ख़ाब है
पर इस बीवी का क्या करु
जिसका धैर्य दे गया जवाब है
वो मेरी जिन्दगी से जा रही है
पर असल में वो तो
बच्चओं को परे ताक़ पर रख कर जा रही है
मेरे तो दस साल जाया हो गए
कम से कम एक बच्चे के भी दस साल खराब हो गए
एक ऐसा शख्स जिसने एक परिवार के
बीस साल खराब किए हो
उसे क्या सज़ा मुकरर हो
इसका फ़ैसला अब दुनिया के ऊपर है
आपके ऊपर है

12.7.08

namaste

नमस्ते एक कला है
किसी को फला है
किसी को नही फला है
नमस्ते किसी को भी कर सकते
नमस्ते किसी का भी ले सकते हो
नमस्ते -नमस्ते करते करते कोई भी काम करा सकते हो
नमस्ते नमस्ते लेते लेते किसी का भी काम कर सकते हो
हाथ जोड़ने में और नमस्ते करने में
काफी अन्तर होता है
हाथ जोड़ना अपने स्वाभिमान को छोटा करना होता है
अस्तु
नमस्ते करना ,अपने स्वाभिमान को दर्शाना होता है
हमेशा नमस्ते करना
ऊपर वाले के सामने हाथ जोड़ना
जब अन्तिम समय आए
नमस्ते करना
धन्यवाद देना दुनिया को
नमस्ते कर विदा लेना
नमस्ते नमस्ते नमस्ते

21.1.08

कुछ खोया कुछ पाया

जिन्दगी में कुछ खोया कुछ पाया
सोचता हूँ कभी कभी क्या ज्यादा खोया
या फिर ज्यादा पाया
असल में पाया वही जाता है
जो खो जाता है
तो बात इतनी सी है
इन्सान जो खोता है
वही पाता है
क्या आप बता सकते हैं ऐसा कोई इन्सान
जिसने जिन्दगी में केवल पाया हो
खोया कुछ भी नही हो
शायद नही
दुनिया में कोई आज तक पैदा नही हुआ
जिसने कुछ खोया नही हो
तो फिर क्यों डरते हो ,क्यों परेशां होते हो
जब तुम्हारा कुछ खो जाता है
कुछ खो जाता है
कुछ पाने के लिए
खो दो अपना जीवन ,खो दो अपनी आत्मा
परमात्मा को पाने के लिए