दिन बीता साल हुआ
फिर भी लगता है
समय वंही का वंही अटका हुआ
समय हर काम का होता है
हर समय काम ही होता है
वो नही होता -जो सोचा होता है
जो सोचा होता है
क्या वो काम नही होता
नही उस काम का समय नही होता
समय जालिम होता है
भागता रहता है
बेचारा इन्सान पीछे चलता रहता है
समय आगे निकल जाता है
इन्सान पीछे रह जाता है
पर
जाते जाते समय ये बोध करा के जाता है
समय के साथ चलो
समय तुम्महारा भी आएगा
16.6.07
14.6.07
कुछ कहने दो
आज फिर दिल कुछ कह रहा है
फिर से वक़्त के सितम सह रहा है
जिन्दगी हो गई बेजार
फिर भी हर पल जीं रहा है
पाबन्द न हो पाया वक़्त के साथ
फिर भी हर पल इम्तहान ले रहा है
प्यार से जीना चाहा था
फिर भी गम के घूँट पी रहा है
हासिल हुआ नही अब तक कुछ भी
फिर भी हर पल ,पल -पल कुछ ना कुछ खो रहा है
जुनून है,हौसला है,मस्ती है,खुमारी है,बेकरारी है
फिर भी न जाने क्यों ये मन भटक रहा है -----------------------------------
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