16.6.07

DUVIDHA

दिन बीता साल हुआ
फिर भी लगता है
समय वंही का वंही अटका हुआ
समय हर काम का होता है
हर समय काम ही होता है
वो नही होता -जो सोचा होता है
जो सोचा होता है
क्या वो काम नही होता
नही उस काम का समय नही होता
समय जालिम होता है
भागता रहता है
बेचारा इन्सान पीछे चलता रहता है
समय आगे निकल जाता है
इन्सान पीछे रह जाता है
पर
जाते जाते समय ये बोध करा के जाता है
समय के साथ चलो
समय तुम्महारा भी आएगा

1 comment:

रवि रतलामी said...

सही है बंधु, समय अटका हुआ लगता है - बहुत बार. :)